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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?

अथवा
हिन्दी साहित्य का आरम्भ कब से माना जाना चाहिए और हिन्दी का प्रथम कवि किसे स्वीकार किया जा सकता है? अपना मत प्रकट कीजिए।

उत्तर -

हिन्दी साहित्य का आरम्भ कब से माना जाये इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि हिन्दी साहित्य के आरम्भ का प्रश्न हिन्दी भाषा के आरम्भ से जुड़ा है। कोई भी जनभाषा अपनी यात्रा पर निकलकर सदा एक रूप नहीं होता स्थान और कालभेद के कारण उसमें स्वतः परिवर्तन होता जाता है। हिन्दी भाषा में भी स्थान एवं कालभेद के कारण अनेक रूप मिलते हैं। ये भेद मगही, मैथिली, भोजपुरी, अवधी, कन्नौजी, बुन्देलखण्डी, बघेलखण्डी, ब्रज, खड़ी बोली, वागरू, मेवाती, हाड़ौती, मादवाड़ी, मेवाड़ी, ढुढारी, मालवी, भीली, खानदेशी, पहाड़ी आदि में देखे जा सकते हैं। ये भेद केवल स्थान भेद के कारण ही नहीं हैं, कालभेद के कारण भी है। कुछ शताब्दियों पूर्व इन भाषाओं का जो रूप-रंग है, वैसा आज उपलब्ध नहीं है, किन्तु तात्त्विक समानता तो है ही। इन सब रूपों में जो साहित्य रचा गया है, वह हिन्दी साहित्य है। परिणामतः भाषा के रूप भेद को न स्मरण करते हुए तात्त्विक परिवर्तन दृष्टि में रखकर एक भाषा का अन्त और दूसरी का आरम्भ मान लेना चाहिए। इसीलिए अपभ्रंश को अलग भाषा मान लेना चाहिए और उसके आधार पर भिन्न रूप में विकसित भाषा को अलग नाम दे देना चाहिए। यह भी सच है कि अपभ्रंश 15वीं शताब्दी से बोलचाल की भाषा से अलग होकर उसके समानान्तर साहित्य रचना का माध्यम बनी। इसी भाषा को कुछ ने उत्तर अपभ्रंश नाम दिया अथवा पुरानी हिन्दी कहा या कुछ विद्वानों ने 'अवहट्ट' नाम दिया है। लेकिन ये नाम भ्रम पैदा करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इस समय की भाषा को पुरानी हिन्दी नाम दिया। उन्होंने कहा उत्तर अपभ्रंश ही पुरानी हिन्दी है। यहाँ उत्तर शब्द काल का बोधक न होकर साहित्यिक अपभ्रंश से इतर बोलचाल की उस भाषा का बोधक है, जो साहित्यिक अपभ्रंश के रूप की स्वीकृति के पश्चात् उसके बाद के रूप में स्थापित होती जा रही है।

आचार्य शुक्ल ने चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के उत्तर अपभ्रंश को स्वीकार कर लिया। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास में उत्तर अपभ्रंश की रचनाओं को स्थान दे दिया और यह भी कहा कि . उनके आधार पर उस काल की कोई विशेष प्रवृत्ति निर्धारित नहीं की जा सकती है। राहुल सांकृत्यायन ने उत्तर अपभ्रंश की रचनाओं को हिन्दी की रचनाएं माना। अपनी पुस्तक 'हिन्दी के प्राचीन कवि और उनकी कविताएं' लेख में उन्होंने हिन्दी का आदिरूप विक्रम शिला और नालन्दा विश्वविद्यालय के सिद्धों द्वारा बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व के प्रचार की भाषा में सिद्ध किया है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने भी गुलेरी व राहुल सांकृत्यायन के मतों को स्वीकार किया और उत्तर अपभ्रंश के. कवियों को हिन्दी साहित्य में स्थान दिया।

आचार्य शुक्ल के समान डॉ. श्यामसुन्दरदास व डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपभ्रंश साहित्य की चर्चा आदिकाल से ही की है। द्विवेदी ने अपभ्रंश और हिन्दी के सम्बन्ध में यों स्वीकार किया। इस प्रकार दसवीं से चौदहवीं शताब्दी का काल जिसे हिन्दी का आदिकाल कहते हैं, भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश का ही बढ़ाव है। इसी अपभ्रंश के बढ़ाव को ही कुछ लोग उत्तरकालीन अपभ्रंश कहते हैं और कुछ लोग पुरानी हिन्दी। बीसवीं शताब्दी तक निश्चित रूप से अपभ्रंश ही पुरानी हिन्दी के रूप में चलती रही थी, यद्यपि उसमें नये तत्सम शब्दों का आगमन शुरू हो गया था। वस्तुतः आचार्य द्विवेदी उत्तर अपभ्रंश को हिन्दी से अलग रखना चाहते हैं, फिर भी उन्होंने उत्तरकालीन साहित्य को आदिकाल की सामग्री माना और विवेचन किया। यानी आचार्य द्विवेदी उत्तर अपभ्रंश को हिन्दी का आरम्भिक रूप मानते हैं। वे यह भी मानते हैं कि अपभ्रंश में तद्भव रूप के प्रयोग किये जाते हैं, जब वह तत्सम रूपों में विकसित हुई तो हिन्दी कहलायी।

उपर्लिखित विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य के आदिकाल की सामग्री में उत्तर अपभ्रंश की सभी रचनाओं का समावेश हो जाता है। इसे हिन्दी साहित्य से निकालना उचित नहीं। अतः सिद्धों की रचनाओं से हिन्दी साहित्य का आरम्भ माना जाना चाहिए। उनके साहित्य की भाषा अपभ्रंश के उत्तर भाषा रूप की सूचना देती है और यह भी कह देना जरूरी है कि सिद्धों की रचनाएँ साहित्यिक अपभ्रंश से खुला विरोध करती नजर आती है। सिद्धों की वस्तु दृष्टि जिस धार्मिक चेतना से जुड़ी है, उसका सीधा सम्बन्ध नाथ साहित्य से भी है और नाथ साहित्य से होती हुई यह दृष्टि भक्तिकाल से जुड़ जाती है।

सिद्ध साहित्य में हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ - सार यह है कि हिन्दी भाषा के विकास की आरम्भिक स्थिति और उत्तरवर्ती धार्मिक चेतना को मूल रूप में ध्यान में रखकर सिद्ध साहित्य से हिन्दी का आरम्भ माना जाना चाहिए। पर साहित्यिक अपभ्रंश के ग्रन्थों से हमें उसे सावधानीपूर्वक अलग करना पड़ेगा। इसलिए कई विद्वानों ने दोनों को ही एक मानकर हिन्दी साहित्य में भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। जिन सिद्धों ने अपभ्रंश व आरम्भिक हिन्दी में रचना की है। ऐसे कवियों की रचनाओं को दो भागों में विभाजित किया जाना चाहिए और उसी आधार पर उसकी गणना की जानी चाहिए। विद्यापति को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। एक ही कवि को अपभ्रंश का कवि भी माना जा सकता है और कुछ रचनाओं में आरम्भिक हिन्दी का प्रयोग देखकर हिन्दी का आरम्भिक कवि भी।

हिन्दी का पहला कवि - हिन्दी का पहला कवि किसे माना जाए? इस मामले में शिवसिंह सेंगर का कहना है कि सातवीं शताब्दी में उत्पन्न पुण्प या पुष्प अथवा 'पुंड हिन्दी के पहले कवि थे। इस कवि का उल्लेख तो है पर उनकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है। राहुल सांकृत्यायन ने सातवीं शताब्दी ईस्वी के कवि सरहपाद को हिन्दी का पहला कवि माना है। सरहपाद 84 सिद्धों में एक थे। उनकी कविता में साहित्यिक अपभ्रंश का रूप छुटा हुआ मिलता है और बोलचाल की भाषा, जिसे प्रारम्भिक हिन्दी कहा जाता है, प्रयुक्त है। वर्ण्य विषय व चेतना की दृष्टि से उनका काव्य हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल का बीजांकुर है। उल्लेखनीय है कि 84 सिद्धों की काव्य चेतना के अनेक तत्व नाथ सम्प्रदाय की काव्य चेतना में विलीन हुए, एक नयी प्रेरणा बनें और फिर उन्होंने भक्तिकाल की आधार भूमि तैयार की। सिद्ध साहित्य से ही नाथ साहित्य का विकास हुआ है और नाथ साहित्य की प्रेरणा से ही भक्तिकालीन संत साहित्य का प्रादुर्भाव। कबीर संत साहित्य के पहले कवि हैं। सरहपाद काव्य परम्परा में विकसित नाथ पंथ का हठयोग कबीर के काव्य में पल्लवित हुआ है। अपभ्रं साहित्य पर सरहपाद का कोई खास प्रभाव नहीं जितना नाथ साहित्य और संत साहित्य पर है सरहपाद की शैली दोहा और पद उनके बाद के सभी कवियों ने अपनाई है। अतः सरहपाद हिन्दी के प्रथम कवि है।

कुछ ऐसे विद्वान भी है जो सरहपाद को हिन्दी का पहला कवि नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि सरहपाद की रचनाएँ अपभ्रंश साहित्य का अंग है। इन विद्वानों के पास दूसरा तर्क यह है कि सरहपाद के समय से ग्यारहवीं शताब्दी तक हिन्दी की रचना परम्परा नहीं मिलती। इन दोनों क में कोई दम नहीं। डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने हिन्दी साहित्य के वैज्ञानिक इतिहास में भरतेश्वर- बाहुबलीरास के रचयिता शालिभद्र सूरि को हिन्दी का पहला कवि माना है। पर इसे तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। सरहपाद की भाषा तो हिन्दी का प्रारम्भिक रूप है, और शालिभद्र सूरि की भाषा में यह रूप नहीं मिलता। शालिभद्र सूरी की हिन्दी को देन नगण्य है जबकि सरहपाद की काव्य चेतना से तो भक्तिकालीन संत कवि तक प्रभावित है। अतः सरहपाद को ही हिन्दी का पहला कवि मानना चाहिए।

हिन्दी की प्रथम रचना - जहां तक हिन्दी की प्रथम रचना का प्रश्न है तो सरहपाद की रचनाएँ तो मुक्तक रूप में मिलती हैं। उनकी किसी भी एक पुस्तक को हिन्दी की प्रथम रचना नहीं माना जा सकता। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी काव्यधारा में सरहपाद की कुछ रचनाओं का संग्रह किया है जिनसे एक उदाहरण दिया जा सकता है -

जह मन पवन न संचरइ, रवि शशि नाह पवेश।
तहि वट चित विसाम करु, सरहे कहिअ उवेश॥
पण्डिअ सजल सत्य बक्खाण्ड
देहहि बुद्ध बसंत न जाणइ॥ .

यों तो इसमें अपभ्रंश भाषा की व्याकरण की प्रवृत्ति देखी जा सकती है, पर हिन्दी के रूप की झलक भी मिलती है। डॉ. द्विवेदी ने जिस तत्समता की प्रवृत्ति को हिन्दी भाषा का मूल रहस्य माना है, वे 'पवन शशि' जैसे शब्द भी देखे जा सकते हैं। अन्य सिद्ध कवियों ने सरहपाद की भाषा शैली का अनुकरण किया है। राहुल जी ने सरहपाद का समय 796 ई. माना है। यों डॉ. विनयतोष भट्टाचार्य 633 ई. मानते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा भी कहते हैं कि सातवीं शताब्दी से ही सिद्धों की रचनाओं को अपनी भाषा के प्रारम्भिक रूप में पाते हैं। अतः यदि एक ग्रन्थ के रूप में हिन्दी की प्रथम रचना का निर्धारण करना है, तो सरहपाद आदि सिद्धों के बाद जैन आचार्य देवसेन कृत 'श्रावकाचार का नाम लिया जा सकता है। चूंकि इसमें सरहपाद को दोहा शैली का विकसित रूप मिलता है।

सारांश यह है कि हिन्दी साहित्य का आरम्भ सिद्ध साहित्य से माना जा सकता है। हिन्दी का पहला कवि सरहपाद है और यदि हिन्दी के एक ग्रन्थ के रूप में हिन्दी की प्रथम रचना स्वीकार करनी है तो वह है आचार्य देवसेन कृत श्रावकाचार।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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